गांधी दर्शन एवं संघ दर्शन एक दूसरे के पूरक श्री प्रकाश मिश्र एडवोकेट

स्मृति के झरोखे से-
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कानपुर सेन्ट्रल जेल, 1975-76: आपातकाल में राजनैतिक बन्दियों के लिये आरक्षित बैरक न. 20 व 22 सत्याग्रहियों से पूरी तरह फुल हो चुकी थी, तिल भर की जगह भी नहीं बची थी तब 22 न. बैरक से संलग्न खुले मैदान में तम्बू लगाये गये थे, कडा़के की ठंड पड़ रही थी। मेरा आशियाना तम्बू था जिसमें केवल विद्यार्थी वर्ग था। कानपुर के विख्यात सर्वोदयी नेता गाँधीवादी विनयभाई की गिरफ्तारी हुयी थी। इसी मैदान में एक दिवार पर श्यामपट ( ब्लेक बोर्ड) सीमेन्टेड बना हुआ था जिसमें प्रतिदिन विनयभाई गाँधी जी के विचारों के उद्धरण (Qutations) जो तरुणभारत, नवजीवन आदि अखबारों में प्रकाशित हुये थे उसे लिखा करते थे। प्रातः 11 बजे सामुहिक भोजन का समय था मैं बिना नागा भोजन से पूर्व विनयभाई के द्वारा लिखे गये गाँधी जी के विचारों को पढ़ता था यह मेरा नित्य नैमित्यिक कर्म सा बन गया था , उसमें एक विशेष बात मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूँ उन प्रत्येक उद्धरण में कुछ विशेष शब्द जैसे- हिन्दु, हिन्दुस्तान, हिन्दुत्व, और हिन्दी का उल्लेख अवश्यमेव आता था!!! यह मेरे लिये कुछ विस्मयकारी बोध था क्योंकि संघ के भोले भाले स्वयं सेवकों की जबा़न पर हिन्दु, हिन्दुत्व, हिन्दी, हिन्दुस्तान रटा था, यानि मन में बसा था जो इसका विरोध करते तो यही स्वयं सेवक जल्दी आपा खोकर गरमाने लगते थे, क्योंकि अभी तक मैं सुनता चला आ रहा था कि गाँधीवाद और संघदर्शन एक दूसरे के धुर विरोधी हैं वस्तुतः ऐसा कुछ भी नहीं है अपितु गाँधीवाद और संघदर्शन एक दूसरे के परिपूरक (Suplimentary) हैं।


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