हमारे नेताजी सुभाष चंद्र बोस

🇮🇳नेता जी सुभाषचंद्र बोस जीवनी🇮🇳 
      नेता जी सुभास चन्द्र बोस एक ऐसा नाम जो अद्वितीय है । शायद हाय दुनिया के किसी देश में इतने महान ,संघर्षशील रास्ट्रवादी ,अदभुत साहसी नेता जन्म लिए हो । 
कुछ ऐसी बाते जो दुनिया में मिसाल है 
    23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में जानकीनाथ बोस व प्रभावती देवी के वहा एक बालक का जन्म हुवा  जिसका  नाम सुभाष चन्द्र बोस रक्खा गया । अपने 14 भाई बहनों में नवी सन्तान के रुप सुभास चन्द्र बोस बचपन से हाय साहसी व मेधावी भी थे । 
  प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता में ही हुवा । पिता को अंग्रजों ने "राय बहादुर "की उपाधि दी थी पिता मसहूर वकिल थे । सारी सुख सुबिधाओं से सुसजित घर होने के बाद भी अंग्रजों की दासता से भारत माँ को गुलामी से आजादी का सपना बचपन से हाय पाला था । 
  प्रारम्भिक शिक्षा के समय ही साहस की परिचय दिया जब एक अन्ग्रेज शिक्षक ने भारत के लोगों व भारत माँ को गाली दिया तो नेता जी ने उसी की भाषा में उसका जबाब दिया जिससे उन्हे स्कुल से बाहर निकाल दिया गया । खेलते समय एक अन्ग्रेज के बच्चे ने दूसरें भारतीय बच्चे को गाली देने लगा तो नेता जी ने उसे वही पटक पटक कर मारा । इसकी चर्चा पूरे कलकत्ता में फैल गई ।
  नेता जी ने हर चुनौती स्वीकारी ,
    B A आनर्स की परीक्षा पास करने के पस्चात सभी माता पिता की भांती नेता जी के पिता जी भी चाहते थे कि वह अधिकारी बने । नेता जी कहते थे की बिदेसियो के आदेश पर कैसे वह बिना किसी गलती के अपने भाइयों के ऊपर जुल्म करेंगे? परन्तु पिता ने कहा की तुम परीक्षा पास नही कर सकते इसलिए बहाना बना रहे हो । इस पर नेता जो परीक्षा पास करने के लिए इंग्लेंड रवाना हो गए । 
  नेता जी भारत के लिए इतिहास रच दिया और प्रथम प्रयास में I C S (जो अब ias है ) परीक्षा चौथा स्थान प्राप्त करके 22 अप्रेल 1921 को त्याग पत्र देने वाले पहले भारतीय बन गए । पूरे इंगलैण्ड व भारत में हडकंप मच गया अन्ग्रेज हरकत में आ गए की यह नौजवान उन्के लिए भविश्य के लिए खतरा होने वाला है । वही से अंग्रजों की विशेष नजर नेता जो पर रहने लगी । 
   भारत आगमन व गाँधी से मुलाकात ,,,
     नेता जी के भारत आने पर क्रान्तिकारियों ने जबर्दस्त स्वागत किया । नेता जी देश बन्धु चितरंजन दास से प्रभावित थे परन्तु रविन्द्र नाथ ठाकुर के कहने पर वो 20 जुलाई 1921 को गान्धीजी से मुलाकात हुई और गान्धी गान्धीजी ने कहा कि वो कलकत्ता में जाकर देश बन्धु जी के साथ मिलकर आन्दोलन करे ।  नेता जी की लोकप्रियता इतनी बढने लगी की नकली देश भक्त उनसे काट छाट करने लगे । कलकता आकर देश बन्धु जी साथ मिलकर कार्य करने लगे । गान्धी जी के असहयोग आंदोलन का नेतृत्व दास बाबू कलकत्ता में कर रहे थे नेता जी साथ जुड गए । दास जी ने 1922 में स्वराज पार्टी का गठन किया जिससे बिधान सभा में जाकर अंग्रजों का विरोध किया जा सके । सबसे पहले नगर पालिका चुनाव हुवा 
  ,, ,  , दास बाबू महापौर बने तो क्या हुवा ,,,,,,,,,,
   नगर पालिका चुनाव में स्वराज पार्टी जी भारी जीत हुई और दास बाबू महापौर बने उन्होने नेता जी को मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाया तो फिर क्या कहना सत्ता का पावर आते ही देश भक्ति ज्वाला बन गई और कलकता की सभी सडकों,गलियों और मुहल्लो का अंग्रेजो के नाम को हटाकर भारतीय महापुरुषों का नाम रख दिया । अब क्या कहना ,अन्ग्रेज अधिकारी पागल हो गए । भारतियों को नौकरी मिलने लगी । अंग्रजों ने तुरन्त बर्खास्त कर दिया और नेता जी गिरफ्तार कर लिए गए । 
  सोचिये देश की आजादी के बाद भी सरकारों के अन्दर हिम्मत नही हुई की अन्ग्रेजी नाम हटा सके और गुलामी का ठप्पा मस्तक पर लिये राज करते रहे ।
   नेता जी जैसे बीर का नाम लेते ही बीरता अपने आप आ हाय जाती है ।
   


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