द्वितीय भाग
पहली जेल यात्रा से आगे
दिसम्बर 1921 में ही जब प्रिन्स आफ वेल्स भारत आए तो नेता जी देश बन्धु सहित सैकडो कार्यकर्ताओ ने बिरोध किया जिसके परिणाम स्वरुप कलकत्ता के गलियों का नाम बदलने सहित कई धाराओं में जेल भेज दिया गया ।
युवाओं के नेता बन चुके नेता जी को पुनः गिरृफ्तार तब किया जब 1924 के लार्ड लिन्टन के द्वारा बंगाल आर्डीनेन्स एक्ट लाया गया और विरोध करने पर जेल में डाल दिया गया और ढाई साल तक जेल में बिताने पड़े l
यह भारत के इतिहास का बिना गलती के सबसे लम्बा जेल की सजा थी ।
उधर गान्धी जी डोमिनियन राज्य की माँग करने लगे पर नेता जी के साथ अधिकतर नेता पुर्ण स्वराज की माँग कर रहे थे । सभी ने अर्थात नेता जी ,मोतीलाल नेहरु जवाहर लाल नेहरू ,पं मदन मोहन मालवीय सरिके नेताओं ने गान्धी जी को समझाने का प्रयास किया पर गान्धी जी नही माने उसके बाद अंग्रजों को एक वर्ष का समय दिया गयाlयदि एक वर्ष में डोमिनियन राज्य पर भी आजादी दे देते है तो ठीक वरना पुर्ण स्वराज की माँग ही होगी ।
1928 के साइमन कमीसन के बिरोध स्वरुप यह पहला मौका था जब भारत में सम्बिधान बनाने के लिए एक समिति का गठन किया गया ।8 सदस्यों की टीम में मोतीलाल नेहरु को अध्यक्ष व नेता जी को सदस्य बनाया गया था । एक वर्ष बीतने के पस्चात जब आजादी गाँधी जी के हिसाब से आजादी नही मिली तो पुर्ण स्वराज की माँग तेज हुई ।
नेता जी बीर थे वह खुद से ज्यादा देश से प्रेम करते थे । 1930फिर 1932 में गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया । उन्हे जेल मे यातनाये दी जाने लगी गन्दे पानी पीने के लिए दिया जाने लगा । घर के किसी ब्यक्ति से मिलने नही दिया जाता था इससे नेता जी" टी वी रोग "से ग्रस्त हो गए भारत मे कही भी इलाज से जब फायदा नही हुवा तो अन्ग्रेजो ने युरोप में दवा कराने की छूट दी ।1932 से 1934 के बीच युरोप में अपना दवा कराने के साथ साथ बिभिन्ं शहरों में केन्द्र स्थापित किये ।
वियना में बिमारी की हालत में ही छात्रो को आन्दोलन के लिए एक जुट करने लगे ।उसी समय एक प्रकासक ने " द इन्डियन स्ट्रगल " पुस्तक लिखने के लिए कहा और वही पर एक टाईपिस्ट 23 वर्षिय महिला से मुलाकात हुई जो उनके पुस्तक को टाईप करने लगी l बाद में उससे प्रेम हुवा 1942 में दूसरी मुलाक़ात पर एक बच्ची पैदा हुई जिसका नाम अनिता बोस रक्खा गया । इसकी जानकारी 1994 में सबके सामने आई । जिसका वर्णन नेता जी के बडे भाई के पोते सगत बोस की किताब "हिज मजेस्टी अपोनेन्ट सुभास चन्द्र बोस ऐण्ड इण्डियाज स्ट्रगल अगेन्स्ट अम्पायर" में किया ।
इसी बीच 1934 में पिता की तबियत ज्यादा खराब होने की सूचना मिली तो नेता जी अपने को रोक नही पाए चूंकि अंग्रेजों ने उन्हे भारत आने पर रोक लगाई थी । भारत पहुचते ही नेता जी को उनके घर में ही नजर बन्द कर दिया गया।
अंग्रजों ने जुल्म का हद कर दिया । बीमार पडे और अब आपरेशन के लिए उन्हे विदेश जाना था तो अंग्रेजो ने केवल आस्ट्रिया व इटली का ही बीजा दिया परन्तु नेता जी ने वहा पर भी संघ बना दिया जिसका अंग्रेजो को ड़र था । पुन: उपचार के बाद जब भारत लौटे तो उनका स्वागत किसी नायक की तरह हुवा और कांग्रेस के अध्यक्ष बनाने की चर्चा जोरो पर उठी ।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस को जेल भेजा